अर्थशास्त्र के नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी के बारे में जानें सबकुछ

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नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी और एस्थर डफ्लो अपनी इस उपलब्धि के मौके पर कहा, ‘हमें रोजाना साफ पानी इकट्ठा करने या ईंधन जुटाने जैसी समस्याओं से जूझना नहीं पड़ता। जबकि गरीबों को रोज का ज्यादातर वक्त इन्हीं कामों को पूरा करने में बीत जाता है। उन्हें गुणवत्तापूर्ण समय का बिताने का मौका मिले तो बदलाव आएगा।’

अभिजीत बनर्जी की पृष्ठभूमि के बारे में बात करें तो उन्होंने हार्वर्ड से पीएचडी पूरी करने के एक दशक बाद 1999 में मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से जुड़े। यहां उनकी देखरेख में एस्थर डफ्लो ने पीएचडी की पढ़ाई पूरी की और कई साल साथ बिताने के बाद दोनों जीवनसाथी बन गए।

लिव इन में रहने के बाद की शादी-

दोनों ने एमआईटी में ही लंबे वक्त तक साथ काम किया। अभिजीत और डफ्लो करीब 18 माह लिव इन रिलेशिप में रहे और 2012 में उनके पहले बच्चे ने जन्म लिया। दोनों ने कानूनी तौर पर वर्ष 2015 में शादी कर ली। गरीबी के खिलाफ अपनी जंग में भट्टाचार्य ने वर्ष 2003 में अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब बनाई। डफ्लो भी एमआईटी में गरीबी उन्मूलन और विकासात्मक अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं। अभिजीत ने  अपनी किताब पुअर इकोनॉमिक्स : रिथिकिंग पॉवर्टी एंड द वेस टू इंड इट में लिखा कि गरीबी हटाने की योजनाएं सफल नहीं हो पाती हैं क्योंकि इनमें गरीबों के आर्थिक प्रोत्साहन को केंद्र में नहीं रखा जाता।

अभिजीत की पहली शादी
पहली पत्नी अरुंधति भी अर्थशास्त्री हैं। डॉक्टर अरुंधति तुली बनर्जी भी मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में लेक्चरर थीं। दोनों ने कोलकाता में एक साथ पढ़ाई भी की थी। हालांकि बाद में उनका तलाक हो गया। दोनों का एक बच्चा भी है। दोनों ने मिलकर 2006 में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म द नेम ऑफ द डिसीज भी बनाई, जिसमें भारत की स्वास्थ्य समस्याओं का उल्लेख था। दोनों ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी में भी कुछ वक्त साथ काम किया।

पूरा परिवार इकोनॉमिक्स से जुड़ा
अभिजीत का पूरा परिवार अर्थशास्त्र से जुड़ा हुआ है। अभिजीत की मां और पिता भी अर्थशास्त्री रहे हैं। उनकी मां निर्मला बनर्जी कोलकाता के सेंटर फॉर स्टजीज इन सोशल साइंसेज में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रही हैं। जबकि पिता दीपक बनर्जी कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर रहे हैं।

गरीबी हटाने के लिए पॉवर्टी एक्शन लैब बनाई
गरीबी के खिलाफ नई योजनाओं और आर्थिक नीतियों को लेकर दोनों की सोच में काफी समानता थी। यही वजह है कि भट्टाचार्य ने वर्ष 2003 में डफ्लो और एक अन्य सहयोगी सेंथिल मुलाईनाथन के साथ मिलकर अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब बनाई। लैब में टीम ने भारत जैसे विकासशील देश में गरीबी के कुचक्र में फंसती आबादी को लेकर शोध किया। भारत से लेकर, हैती, रवांडा तक गरीबी इलाकों में जानकर उन्होंने खुद जमीनी हकीकत भी जानी। दोनों ने दिखाया कि कैसे गरीब देशों की मदद बढ़ी है, लेकिन उनके आर्थिक विकास और जीडीपी में कोई फर्क नहीं आया है।

दिल्ली से लेकर उदयपुर तक दौरा
दोनों गरीबों पर शोध को लेकर राजस्थान, दिल्ली और आंध्र प्रदेश जैसे कई भारतीय राज्यों का दौरा किया। वर्ष 2006 में आंध्र प्रदेश के गुंटूर पहुंचे। क्योंकि उदयपुर में उन्होंने पाया कि महिलाएं अपने बच्चों को टीकाकरण के लिए सरकारी अस्पताल नहीं ले जा रही थीं। फिर उनकी टीम ने टीकाकरण कराने वाली महिलाओं को क्लीनिक पर करीब एक किलो दाल देने का कार्यक्रम चलाया और आश्चर्यजनक सफलता देखने को मिली। उनका अभिप्राय साफ था कि गरीबों की शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य योजनाओं को आर्थिक प्रोत्साहन और स्वालंबन से जोड़ा जाए।

गरीबों की प्राथमिकताओं को समझें
दोनों ने लिखा कि गरीब को एक रुपये ज्यादा मिलता है तो वह टीवी, त्योहार या महंगा भोजन खरीदने में खर्च करता है। यह साफ दिखाता है कि बोझिल जिंदगी नहीं जीना चाहता। ज्यादा पोषक भोजन लेने और लंबा जीवन जीने की चिंता उन्हें नहीं रहती है। मतलब साफ है कि हम उनका पेट तो भर रहे हैं, लेकिन उनकी जिंदगी में बदलाव नहीं ला पा रहे।

भारत सरकार को यह सलाह दी-

  • सभी गरीबों को कम से कम 15 साल तक नकद मदद दी जाए
  • मुफ्त वैश्विक स्वास्थ्य बमा योजना में सभी गरीबों को लाया जाए
  • 200 यार्ड के भीतर सभी गरीबों को साफ पीने का पानी मिले
  • टीकाकरण जैसे कार्यक्रमों के साथ आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाएं
  • प्राथमिक शिक्षा में पढ़ने-लिखने और गणित पर ही जोर हो
  • नोबेल इन वेटिंग
    जॉन बेट्स क्लार्क मेडल मिला जो 40 साल से कम उम्र के अर्थशास्त्रियों को दिया जाता है। यह पुरस्कार जीतने वाले को नोबेल इन वेटिंग भी कहा जाता है। इस पुरस्कार के विजेताओं में 50 फीसदी को नोबेल मिल चुका है। पिछले कई साल से अभिजीत और डफ्लो को नोबेल के लिए नामित किया गया और इस बार उन्हें यह सम्मान हासिल हुआ।